बिहार का नामकरण (Etymology of Bihar) प्राचीन बिहार का इतिहास (Ancient History of Bihar) मध्यकालीन बिहार का इतिहास (Medieval History of Bihar) आधुनिक बिहार का इतिहास (Modern History of Bihar)
बिहार का नामकरण (Etymology of Bihar)
Table of Contents
‘बिहार‘ शब्द संस्कृत एवं पाली शब्द ‘विहार’ से उद्धृत है जिसका तात्पर्य-‘आवास’ या ‘रहने का स्थान’ होता है (बिहार राज्य के इस सन्दर्भ में ‘विहार’ का अर्थ ‘घूमना या टहलना’ मानना गलत है)। उल्लेखनीय है कि प्राचीन काल में यहाँ बौद्ध विहारों की अधिकता थी।
12वीं शताब्दी के अंत एवं 13वीं शताब्दी के प्रारम्भ में तुर्कों ने बिहार पर जबरदस्त आक्रमण किया। कुतुबुद्दीन ऐबक के सेनापति मालिक हुसामुद्दीन के सहायक इब्ने बख्तियार खिलजी ने नालंदा विश्वविद्यालय को क्षति पहुंचाई बल्कि यहाँ से 6 किमी दूर ओदन्तपुरा विहार को भी क्षतिग्रस्त कर इस क्षेत्र को ‘बिहार शरीफ’ नाम दिया। कालांतर में पुरे प्रदेश को हीं ‘बिहार’ के नाम से जाना जाने लगा।
प्राचीन बिहार का इतिहास (Ancient History of Bihar)
- पुरापाषाण काल (Palaeolithic Age)-बिहार में इस काल के कई अवशेष प्राप्त हुए हैं जो 100,000 ई.पू. काल के माने जाते हैं। मुंगेर का भीमबांध एवं गया जिला का जेठियन इसमें सर्वाधिक महत्वपूर्ण है।
- मध्यपाषाण काल (MesolithicAge-100,000-40000 BC) मूलतः मुंगेर से प्राप्त जिसमे,तेज धार एवं नोक वाले हथियार प्राप्त हुए हैं जो 100,000-40000 ई.पू. काल के माने जाते हैं ।
- नवपाषाण काल (Neolithic Age)- इस काल के उपकरण सारण जिले के चिरांद एवं वैशाली जिले के चेचर से प्राप्त हुए हैं एवं ये प्रायः 2500-1500 ई.पू. के माने गए हैं।
- ताम्र पाषाण काल (Chalcolithic Age)-बिहार में इस काल के काले और लाल मृदभांड (Black and Red Ware) वर्तमान रोहतास के सिनुआर,सारण के सोनपुर एवं चिरांद, वैशाली के चेचरएवं भागलपुर के ओरियम से प्राप्त हुए हैं।
वैदिककालीन (आर्यकाल में) बिहार –
ऋग्वेद में बिहार के लिए ‘कीकट’ एवं ‘ब्रात्य’ जैसे शब्दों का उल्लेख मिलता है। अथर्ववेद में अंग एवं मगध का उल्लेख जबकि, यजुर्वेद में सर्वप्रथम विदेह राज्य का उल्लेख मिलता है।
शतपथ ब्राह्मण (800 ई०पू० में रचित) में विदेह के जनक को सम्राट के रुप में उल्लिखित जय गया है। इसी ग्रन्थ में उल्लिखित है कि विदेह माधव और उसके पुरोहित गौतम राहूगण सरस्वती नदी के तट से बढकर सदानीरा नदी (बिहार का गंडक) के तट पर पहुँचे। इस प्रकार बिहार में आर्यों का विस्तार 1000 ई०पू०-800 ई०पू० के मध्य गांगेय घाटी के जंगलों को साफ़ करने से हुई। प्रारम्भ में मगध एवं बाद में इनका विस्तार अंग में हुआ।
वाराह पुराण में कीकट को ‘अपवित्र’ जबकि गया को ‘पवित्र’ कहा गया है। परन्तु, वायुपुराण में गया में असुरों के शासन का उल्लेख है।
वैदिककालीन (आर्यकाल में) बिहार –
ऋग्वेद में बिहार के लिए ‘कीकट’ एवं ‘ब्रात्य‘ जैसे शब्दों का उल्लेख मिलता है। अथर्ववेद में अंग एवं मगध का उल्लेख जबकि, यजुर्वेद में सर्वप्रथम विदेह राज्य का उल्लेख मिलता है।
शतपथ ब्राह्मण (800 ई०पू० में रचित) में विदेह के जनक को सम्राट के रुप में उल्लिखित जय गया है। इसी ग्रन्थ में उल्लिखित है कि विदेह माधव और उसके पुरोहित गौतम राहूगण सरस्वती नदी के तट से बढकर सदानीरा नदी (बिहार का गंडक) के तट पर पहुँचे। इस प्रकार बिहार में आर्यों का विस्तार 1000 ई०पू०-800 ई०पू० के मध्य गांगेय घाटी के जंगलों को साफ़ करने से हुई। प्रारम्भ में मगध एवं बाद में इनका विस्तार अंग में हुआ।
वाराह पुराण में कीकट को अपवित्र जबकि गया को ‘पवित्र’ कहा गया है। परन्तु,वायुपुराण में गया में असुरों के शासन का उल्लेख है।
छठी शताब्दी ई०पू० के पूर्व का बिहार- जनपदों का विकास
उत्तरवैदिक काल (1500 ई०पू०-600 ई०पू०) में मूलतः कांस्य युग था। परन्तु,कालांतर में कुछ कालखंड संक्रमणकालीन भी रहे जिसमे लोहे का प्रयोग प्रारम्भ हो चूका था। इस समय अपेक्षाकृत छोटे राज्यों के रूप में कुछ गणतंत्रों का भी विकास हुआ।
विदेह- यजुर्वेद में सर्वप्रथम विदेह राज्य का उल्लेख मिलता है। सूर्यवंशी इक्ष्वाकु के पुत्र निमि विदेह ने यहाँ राजवंश की शुरुवात की। दूसरे शासक मिथि जनक विदेह ने मिथिला की स्थापना की एवं इसके पश्चात् इस वंश के सभी राजाओं के साथ ‘जनक’ शब्द जुड़ने लगा। 25 वें राजा सिरध्वज जनक की गोद ली गयी पुत्री सीता का विवाह आयोध्या के शासक दशरथ के पुत्र राम से हुई थी।
अंग-अथर्वेद में सर्वप्रथम अंग राज्य का उल्लेख मिलता है। इसकी प्रारंभिक राजधानी मालिनी कालांतर में ‘चम्पा या चम्पावती’ (वर्तमान चम्पानगर,भागलपुर) कहलाई। व्हेनसांग इसे अपने वर्णन में ‘चेन्नंपो’ कहा है। अंग नगर का निर्माण वास्तुकार महागोविंद ने किया था (दीघ निकाय के अनुसार )।
वैशाली- इस समय का सर्वाधिक शक्तिशाली गणराज्य वैशाली (वर्तमान बसाढ़,मुजफ्फरपुर ) ही थी। लिच्छवि के राजा चेटक (ये वज्जि संघ के प्रमुख थे। तत्कालीन 10 गणराज्यों में से 8 गणराज्यों का समूह वज्जि संघ में सम्मिलित था।) महावीर की माता त्रिशला चेटक की बहन थी जबकि इनकी पुत्री चेल्लना का विवाह मगध नरेश बिम्बिसार से हुआ था। इसी से बिम्बिसार को अजातशत्रु नामक पुत्र की प्राप्ति हुई। जबकि, बिम्बिसार और ‘वैशाली की नगरवधू’ आम्रपाली से अभय कुमार नामक पुत्र की प्राप्ति हुई। बुद्ध ने आम्रपाली के यहाँ भी भोजन प्राप्त किया था। अजातशत्रु ने बाद में वज्जि संघ में फुट डालकर इसे मगध साम्राज्य का हिस्सा बना लिया। उल्लेखनीय है कि कालांतर में कुषाण वंश के पतन के बाद पुनः वैशाली के लिच्छवियों ने मगध पर अधिकार कर लिया था।
छठी शताब्दी ई०पू० के पश्चात् का बिहार- महाजनपदों का विकास
लोहे के उत्तरोत्तर बढ़ते प्रयोग ने महाजनपदों का विकास (600 ई०पू०-300 ई०पू०) में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और इस लौह युग में विशालकाय कुलीनतंत्रीय साम्राज्यों का जन्म हुआ। मगध इनमे सर्वाधिक शक्तिशाली था। गुप्त वंश से पूर्व इस पर शासन करने वाले राजवंश क्रमशः हैं-बृहद्रथ वंश-हर्यंक वंश-शिशुनाग वंश-नन्द वंश-मौर्य वंश-शुंग वंश-कण्व वंश-कुषाण वंश।