बौद्ध संगीतियाँ -क्रम संख्या,समय,तत्कालीन शासक, अध्यक्ष और उपाध्यक्ष, परिणाम,मुख्य कार्य

बौद्ध संगीतियाँ -क्रम संख्या,समय,तत्कालीन शासक, अध्यक्ष और उपाध्यक्ष, परिणाम,मुख्य कार्य

क्रम संख्या,समयस्थान तत्कालीन शासकअध्यक्ष और उपाध्यक्ष
प्रथम बौद्ध संगीति-483 ई.पू.राजगृह-सप्तपूर्णि गुफाअजातशत्रु(हर्यक वंश)महाकस्सप उपलि
द्वित्तीय बौद्ध संगीति-383 ई.पू.वैशाली में कालाशोक (शिशुनाग वंश )सब्ब्कामि 
तृतीय बौद्ध संगीति-250 ई.पू. पाटलिपुत्र में अशोक (मौर्य वंश)मोग्गलिपुत्त तिस्स
चतुर्थ बौद्ध संगीति-72 ईस्वीकुण्डलवन, कश्मीर में कनिष्क (कुषाण वंश)वसुमित्र उपाध्यक्ष -अश्वघोष
बौद्ध संगीतियाँ

प्रथम बौद्ध संगीति

समय,स्थान,तत्कालीन शासक,अध्यक्ष और उपाध्यक्ष,परिणाम/मुख्य कार्य

समय-483 ई.पू.

स्थान-राजगृह-सप्तपूर्णि गुफा

तत्कालीन शासक-अजातशत्रु (हर्यक वंश)

अध्यक्ष और उपाध्यक्ष-महाकस्सप/उपलि

परिणाम/मुख्य कार्य-बुद्ध की शिक्षाओं को (‘सुत्तपिटक’-धर्म सिद्धांत)-बुद्ध के शिष्य आनन्द द्वारा संकलित और शिष्यों के लिए निर्धारित नियमों को (‘विनयपिटक’-आचार नियम)-बुद्ध के शिष्य उपालि द्वारा संकलित।

द्वित्तीय बौद्ध संगीति

समय-383 ई.पू.

स्थान-वैशाली में

तत्कालीन शासक-कालाशोक (शिशुनाग वंश )

अध्यक्ष और उपाध्यक्ष-सब्ब्कामि 

परिणाम/मुख्य कार्य-विनयपिटक और अनुशासन के नियमों में विवाद के कारण भिक्षु संघ दो सम्प्रदायों में विभाजित- 1.स्थविर (थेरवादी)-महाकच्चायन के नेतृत्व वाले इस सम्प्रदाय ने परिवर्तन के परम्परागत विनय के नियम में आस्थावान । 2.महासांघिक-महाकस्स्प/महाकश्यप के नेतृत्व में इस सम्प्रदाय ने परिवर्तन के साथ विनय के नियमों में आस्थावान । कालान्तर में दोनों सम्प्रदाय 18 उप-सम्प्रदायों में विभाजित हो गए ।

बौद्ध संगीतियाँ

तृतीय बौद्ध संगीति

समय-250 ई.पू.

स्थान– पाटलिपुत्र में

तत्कालीन शासक-अशोक (मौर्य वंश)

अध्यक्ष और उपाध्यक्ष-मोग्गलिपुत्त तिस्स

परिणाम/मुख्य कार्य- थेरवादियों का प्रभुत्व,संघ में भेद को रोकने के लिए कठोर नियमों का निर्माण ,तृतीय पिटक-‘अभिधम्म पिटक’ (कथावस्तु) का संकलन जिसमें धर्म सिद्धांत की दार्शनिक व्याख्या । अब तीन पिटक ही- ‘त्रिपिटक’ कहलाते हैं ।

चतुर्थ बौद्ध संगीति

समय-72 ईस्वी

स्थान-कुण्डलवन, कश्मीर में

तत्कालीन शासक-कनिष्क (कुषाण वंश)

अध्यक्ष और उपाध्यक्ष-वसुमित्र उपाध्यक्ष -अश्वघोष

परिणाम/मुख्य कार्य-महासांघिकों का प्रभुत्व,  बौद्ध ग्रन्थों के कठिन अंशों पर संस्कृत भाषा के विचार-विमर्श के बाद -‘विभाषाशास्त्र’ नामक टीका का संकलन ,बौद्ध धर्म दो स्पष्ट और स्वतंत्र सम्प्रदायों-‘हीनयान’और ‘महायान’में विभाजित ।

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